Minimata ka Jivan Parichay – छत्तीसगढ़ की पहली महिला सांसद मिनीमाता

Minimata ka Jivan Parichay: पं. रविशंकर शुक्ल की प्रेरणा से मिनीमाता मध्यावधि चुनाव में रायपुर से सांसद चुनी गई । तब उनका बेट विजय कुमार जी बहुत छोटे थे। अब उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई. परंतु उन्होंने बहुत ही कुशलतापूर्वक अपने घरेलू और सामाजिक दायित्व का निर्वाहन किया। यही कारण है कि वे सन् 1952 में रायपुर, सन् 1957 में बलौदाबाजार एवं सन् 1967 में जांजगीर-चाम्पा क्षेत्र से लगातार तीन बार लोकसभा के लिए चुनी गई। सांसद बन जाने के बाद उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई। ऐसा कहते है कि हर काम को जब तक पूरा नहीं करतीं, तब तक वे चिन्तित रहती थी और सहयोगियों से निरंतर संपर्क बनाए रखती थीं। ये छत्तीसगढ़ अंचल की पहली महिला सांसद थी।

मिनीमाता का जन्म

मिनीमाता छत्तीसगढ़ अंचल की पहली महिला सांसद तथा कर्मठ समाज सुधारक थी। उनका जन्म सन् 1916 होलिका दहन के दिन असम राज्य के वागांव जिले के जमुना सुख नामक गाँव में हुआ था उनका असली नाम मीनाक्षी था । उनके पिताजी का नाम महंत दुधारीदास तथा माँ का नाम श्रीमती देवमती बाई था। इनके नानाजी छत्तीसगढ़ के पंडरिया जमींदारी के सगौना गाँव के निवासी थे।

सन् 1901 से 1910 के मध्य जब छत्तीसगढ़ अंचल में भीषण अकाल पड़ा, तो मीनाक्षी के नानाजी आजीविका की तलाश में सपरिवार असम चले गए और चाय के बागानों में काम करने लगे। मीनाक्षी ने असम में सातवीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की । मीनाक्षी एक देशभक्त बालिका थी, जो अल्पायु में ही गुलामी का मतलब और आजादी का महत्व जान चुकी थी। वे अपने साथी बच्चों के साथ विदेशी वस्त्रों की होली जलाती तथा स्वदेशी का प्रचार-प्रसार करती थीं ।

मिनीमाता का जीवन परिचय

नाममीनाक्षी देवी (मिनी माता)
जन्म स्थाननवागांव, असम
जन्म15 मार्च 1916
पिता महंत बुधारीदास 
माता देवमती बाई
पति गुरु अगमदास जी
निधन 11 अगस्त 1972 

मिनीमाता का वैवाहिक जीवन

मीनाक्षी के जीवन में एक नया मोड़ उस समय आया, जब गुरु अगमदास जी धर्म प्रचार के सिलसिले में असम पहुँचे। गुरु अगमदास जी का कोई पुत्र न था । इससे गुरु गद्दी के उत्तराधिकारी की चिंता पूरे समाज में व्याप्त थी । इस कारण उन्होंने मीनाक्षी को अपनी जीवनसंगिनी के रूप में चुना और सन् 1932 में उनसे विधिवत विवाह किया। अब गुरुपत्नी मीनाक्षी मिनीमाता के रूप में समाज में प्रतिष्ठित हुईं।

विवाह के उपरांत मिनीमाता जी रायपुर (छत्तीसगढ़) आ गई तथा यहीं पर उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की। उनका हिंदी, असमिया, अंग्रेजी, बांग्ला तथा छत्तीसगढ़ी भाषा पर अच्छा अधिकार था। मिनीमाता ने गुरु परंपरा के अनुसार संपूर्ण छत्तीसगढ़ में अपने पति गुरु अगमदास जी के साथ भ्रमण कर सामाजिक कार्यों का अनुभव प्राप्त किया ।

मिनीमाता का राजनितिक सफर

गुरु अगमदास जी महान देशभक्त तथा समाज सुधारक थे। वे राष्ट्रीय आंदोलन में भी सक्रिय रूप से भाग ले रहे थे। वे स्वदेशी के समर्थक थे और खादी पहनते थे उन्हीं का अनुसरण करते हु मिनीमाता भी खादी पहनती थी। गुरु अगमदास जी की प्रेरणा और प्रोत्साहन से ही समाज के सैकड़ों मुक्त राष्ट्रीय आदोलन में कूद पड़े थे। रायपुर स्थित उनका घर सत्याग्रहियों के लिए मंदिर के समान बन गया था। पं. सुंदरलाल शर्मा, राधाबाई, ठा. प्यारेलाल सिंह, पं. रविशंकर शुक्ल, डॉ. खूबचंद बघेल जैसे बड़े-बड़े नेता उनके घर अक्सर आते रहते थे ।

देश की स्वतंत्रता के बाद गुरु अगमदास जी सांसद चुने गए। सन् 1951 में उनका अचानक स्वर्गवास हो गया। पं. रविशंकर शुक्ल की प्रेरणा से मिनीमाता मध्यावधि चुनाव में रायपुर से सांसद चुनी गई। तब उनका बेट विजय कुमार जी बहुत छोटे थे। अब उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई. परंतु उन्होंने बहुत ही कुशलतापूर्वक अपने घरेलू और सामाजिक दायित्व का निर्वाहन किया। यही कारण है कि वे सन् 1952 में रायपुर, सन् 1957 में बलौदाबाजार एवं सन् 1967 में जांजगीर-चांपा क्षेत्र से लगातार तीन बार लोकसभा के लिए चुनी गई।

सांसद बन जाने के बाद उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ गई। ऐसा कहते है कि हर काम को जब तक पूरा नहीं करतीं, तब तक वे चिन्तित रहती थी और सहयोगियों से निरंतर संपर्क बनाए रखती थीं । ये छत्तीसगढ़ अंचल की पहली महिला सांसद थी।

मिनीमाता द्वारा सामाजिक कार्य

मिनीमाता जी अस्पृश्यता को समाज के लिए एक अभिशाप मानती थी और देश के सर्वांगीण विकास के लिए इसे पूरी तरह से समाप्त कराना चाहती थीं। यही कारण है कि उन्होंने संसद में ऐतिहासिक ‘अस्पृश्यता निवारण विधेयक प्रस्तुत किया, जो कि पारित भी हुआ। मिनीमाता जी ने देश की संसद में महिलाओं की दशा सुधारने के लिए निरंतर आवाज बुलंद की। उन्होंने महिला उत्पीडन, दहेज प्रथा, अन्याय, बेमेल विवाह तथा बालविवाह का विरोध किया। उन्होंने अपने निर्देशन में कई जगह विधवा पुनर्विवाह संपन्न कराए। बाल विवाह तथा बेमेल विवाह के विरुद्धका निर्देश प्रसारित करवाया। उन्होंने रायपुर में सतनामी आश्रम की स्थापना की।

मिनीमाता जी ने स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में भी काम किया । वे अपनी सभाओं में ही नहीं, सभी मिलने वाले लोगों से भी कहती कि अपनी बेटियों को जरूर शिक्षित करें। उन्होंने कई जरूरतमंद गरीब बच्चों को अपने घर में रखकर भी पढ़ाया लिखाया और आत्मनिर्भर बनाया। रायपुर के अमीनपारा में स्थित छात्रावास की संस्थापक संचालक सदस्या थी।

मिनीमाता जी की निःस्वार्थ समाज सेवा की भावना को देखते हुए में जवाहर लाल नेहरू को भीमराव अंबेडकर, बाबू जगजीवन राम श्रीमती इंदिरा गांधी एवं पं. रविशंकर शुक्ल जैसे देश के शीर्ष नेता नी उनसे प्रभावित थे तथा सदैव उन्हें प्रोत्साहित करते थे । छत्तीसगढ़ अंचल में कृषि तथा सिंचाई के लिए हसदेव बाँध परियोजना के निर्माण में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

मिनीमाता जी के हृदय में सभी धर्मों के लिए समान रूप से आदर का भाव था ये सभी लोगों से यही कहती थीं कि लोगों का आदर करें, सम्मान करें। मिनीमाता छत्तीसगढ़ राज्य के आन्दोलन में शुरू से ही सक्रिय रूप से हिस्सा लेती रही थी। छत्तीसगढ़ के लोगों को स्वाभिमान से जीने का हौसला मिला ।

सादा जीवन उच्च विचार उनके जीवन का आदर्श था और परम पूज्य संत गुरु घासीदास जी के आदेश उपदेश के अनुरूप आचरण करती हुई व निरंतर लोगों की सेवा करती हुई अपने सरल स्वभाव मृदुभाषी एवं मिलनसारिता के गुणों के कारण भाताजी के नाम से संबोधित होती रही ।

मिनीमाता का निधन

11 अगस्त सन् 1972 ई. को भोपाल से दिल्ली जाते हुए पालन हवाई अड्डे के पास विमान दुर्घटना में उनका देहांत हो गया। मिनीमाता जो किसी भी राजघराने से नहीं थी परंतु उनकी ममतामयी स्नेहिल व्यवहार के कारन ही अचल की जनता उनको राजमाता जैसा सम्मान देती थी। छत्तीसगढ़ का विधानसभा भवन उनके नाम पर ही बनाया गया है।

नवीन राज्य की स्थापना के बाद छत्तीसगढ़ शासन ने उनकी स्मृति में महिला उत्थान के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए राज्य स्तरीय मिनीमाता सम्मान स्थापित किया है।

ये भी पढ़े:-

Leave a Comment